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Essay on postman in Hindi

डाकिया पर सरल भाषा में निबंध | Essay on postman in Hindi

यदि आप डाकिया पर सरल भाषा में निबंध(Essay on postman in Hindi) खोज रहे है, तो आप बिलकुल सही जगह आये है। इस आर्टिकल में मैंने डाकिया पर बहुत सरल भाषा में निबंध लिखा है, जो की सभी छात्रों के लिए मददगार साबित होगा। इस लेख में आपको डाकिया का परिचय, डाकिया की आवश्यकता, डाकिया का कार्य, और डाकिया का इतिहास आदि मिलेगा । इसमें आपको डाकिया पर 10 वाक्य भी देखने को मिलेंगे जिसे आप बहुत आराम से पढ़ सकते है।

Essay on postman in Hindi– डाकिया के थैले में सुख-दुःख के अनेक सन्देश रहते है। वह किसी को पत्र द्वारा रुलाता है तो किसी को पत्र द्वारा ही खुश करता है। कभी-कभी वह हमारी आशा और उत्सकता का केंद्रबिंदु बन जाता है।

डाकिया एक डाक विभाग का सरकारी कर्मचारी होता है। उसका काम चिठ्ठी, मिनीओर्डर, छोटा पार्सल, आदि को बाटने का होता है।

सभी लोग बहुत उतसुकपूर्वक डाकिये के आने का इंतजार करते है। सरकार की ओर से उसे एक खास तरह के कपडे पहनने को दिए जाते है।

शहर का डाकिया खाकी पैंट, खाकी कमीज और खाकी पगड़ी या टोपी का इस्तेमाल करता है। गांव का डाकिया प्रातः इस तरह की पोशाक हमेशा नहीं पहनता। वह अधिकतर साधारण कपडे पहनकर गांव में लोगो को पत्र, मिनीओर्डर आदि देता है।

डाकिया के गले में चमड़े का एक थैला लटकता रहता है, जिसमे वह सभी चीजे को रखता है।

डाकिया का काम दिनभर चलकर लोगो के घर पत्र आदि पहुँचाना होता है, चाहे चिलचिलाती धुप हो या मूसलधार वर्षा, कड़ाके की ठण्ड पड़ती हो या ओले बरसते हो, डाकिया हर दिन घर-घर जाता है और लोगो को दुःख-सुख के समाचार पत्रों द्वारा देता है। उसे तनिक भी फुर्सत नहीं मिलती।

गांव के डाकिया को पत्र आदि बाँटने के आलावा पोस्टकार्ड, टिकट आदि भी बेचने पड़ते है। वह अपने थैले में डाक-टिकट रखता है और जरूरत पड़ने पर लोगो को टिकट आदि भी बेचता है।

शहर के डाकिया को ऐसा नहीं करना पड़ता। शहर का डाकिया सुबह 9 बजे से शाम के 5 बजे तक पत्र आदि बाँटने का काम करता है।

वैसे तो आज कल इंटरनेट का जमाना आ गया है। अधिकतर लोग अपने फ़ोन का कंप्यूटर का इस्तेमाल करके लोगो को ऑनलाइन कुछ ही सेकंड में सन्देश भेज देते है। परन्तु अभी भी कुछ ऐसे संदेश या पत्र होते है, जो की डाकिया द्वारा ही हम तक पहुंचते है, जैसे की कोई भी सरकारी नौकरी का जोइनिंग लेटर, गूगल वेरिफिकेशन पिन, आदि।

इस आधुनिक दुनिया में आज भी डाकिया की बहुत अहमियत है। डाक घर पत्र बाटने के साथ-साथ बैंकिंग अर्थात पैसे जमा करने का काम भी करता है।

डाकिया एक सरकारी नौकरी होती है, जिसके लिए पेपर पास करना पड़ता है। गांव में लोग डाकिया को बहुत से नामो से पुकारते है जैसे- पोस्टमैन, डाकिया भैया, डाक बाबू, डाक चाचा, आदि।

डाकिया को देवदूत के नाम से भी पुकारा जाता है।

डाकिया समाज का एक उपयोगी सेवक है। वह बहुत काम का आदमी होता है। वह पत्र बाटकर या पत्र द्वारा एक माँ को अपने बिछुड़े बेटे से मिलाता है और बीमार दादी या नानी का समाचार सुनाता है।

यदि डाकिया कोई शुभ सामंचार पत्र लाता है तो शुभ समाचार मिलते ही उदासी दूर हो जाती है और होठो पर मुस्कुराहट दौरने लगती है, आखे चमकने लगती है।

हमारा बेहद जरूरी समाचार भी डाकिया द्वारा ही हम तक पहुँचता है। सरकारी नौकरी का जोइनिंग लेटर भी डाकिया ही हम तक लाता है।

डाकिया कभी कभी बिना कुछ खाय-पीय ही पत्र हमें लाकर देता है। यदि किसी बहिन का भाई उससे बहुत दूर है, तो वह डाकिया द्वारा ही अपनी राखी अपने भाई तक पहुँचाती है।

यदि कोई पत्र दूसरे देश से आता है तो वह सबसे पहले डाक-घर में जाता है और डाकिया द्वारा ही हम तक पहुँचता है। डाकिया हमें घर बैठे ही सब जानकारी के पत्र लेकर देता है।

डाकिया का काम बड़ा ही कठिन काम होता है। वह दिन-भर घूम-घूमकर चिठिया बाँटता है, मिनीओर्डर के रूपये देता है, अपनी पीठ पर पार्सल के गठ्ठर लादकर लोगो के घर पहुँचता है।

डाकिया का काम बड़ी जवाबदेही का होता है, उसे बहुत सारे लोगो के प्रश्नो का जवाब देना पड़ता है। वह अपने साथ मिनीओर्डर के रूपये, पार्सल के सामान आदि अपने साथ लेकर चलता है।

कभी-कभी वह शुमसाम रास्तो में गुंडों और बदमासो का भी शिकार बन जाता है, उसके सभी रूपये, थैले और पार्सल आदि भी छीन लिए जाते है। ऐसी हालत में उसकी जान भी जोखिम में पड़ जाती है। पिटे तथा लुटे जाने पर अपने अफसरों के सामने उसे सफाई देनी पड़ती है। कभी-कभी तू उसे बदमाशों से अपनी जान तक गवानी पड़ती है।

डाकिया को कभी कभी पुरे दिन तक खाने तक का समय नहीं मिलता। चाहे कितनी भी गर्मी हो चाहे कितनी भी ठण्ड हो वह रोज पत्र बाटने जाता है।

डाकिया दिन भर मेहनत करने के बावजूद बहुत कम वेतन कमाता है। डाकिया अपनी पूरी जिंदगी लोगो की सेवा में अर्थात पत्र बाटने में ही गवा देता है।

सबसे पहले 1766 में पहली बार लार्ड क्लाइव ने डाक के व्यवस्था की शुरुआत की थी। जिसे वारेन हेस्टिंग ने 1774 में एक गति प्रदान की। भारत में डाक घर को राष्ट्रीय स्तर पर 1 अक्टूबर 1854 में महत्व दिया गया।

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डाकिया के थैले में सुख-दुःख के अनेक सन्देश रहते है। वह किसी को पत्र द्वारा रुलाता है तो किसी को पत्र द्वारा ही खुश करता है। कभी-कभी वह हमारी आशा और उत्सकता का केंद्रबिंदु बन जाता है।

वह सबका प्रिय होता है। सभी लोग अपने द्वार पर उसका स्वागत करते है। अतः डाकिया हमारे समाज का एक बड़ा ही उपयोगी सेवक होता है।


  • डाकिया एक डाक विभाग का सरकारी कर्मचारी होता है।
  • उसका काम चिठ्ठी, मिनीओर्डर, छोटा पार्सल, आदि को बाटने का होता है।
  • सभी लोग बहुत उतसुकपूर्वक डाकिये के आने का इंतजार करते है।
  • सरकार की ओर से उसे एक खास तरह के कपडे पहनने को दिए जाते है।
  • शहर का डाकिया खाकी पैंट, खाकी कमीज और खाकी पगड़ी या टोपी का इस्तेमाल करता है।
  • गांव का डाकिया प्रातः इस तरह की पोशाक हमेशा नहीं पहनता।
  • गांव में लोग डाकिया को बहुत से नामो से पुकारते है जैसे- पोस्टमैन, डाकिया भैया, डाक बाबू, डाक चाचा, आदि।
  • डाकिया को देवदूत के नाम से भी पुकारा जाता है।
  • डाकिया को कभी कभी पुरे दिन तक खाने तक का समय नहीं मिलता।
  • सभी लोग अपने द्वार पर उसका स्वागत करते है।

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